भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई दिन याद करोगे रमता राम अतीत / चंद्रसखी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:42, 17 नवम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रसखी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई दिन याद करोगे रमता राम अतीत ।
आसन मार गुफा माहि बैठ्यो, याही भजन की रीत ।
असल चन्दन की धूनी रमाय, रंगमहल के बीच ।
पाट पाटम्बर की झोली सिमाद्यूँ, रेशम तनिया बीच ।
मैं तो जाणे थी जोगी संग चलेगा, छाँड़ि गया अधबीच ।