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दोपहर में हिमपात / राबर्ट ब्लाई / अनिल जनविजय

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1

घास आधी बर्फ़ से ढकी हुई है ।

यह उसी तरह की
बर्फ़बारी थी
जो दोपहर बाद शुरू होती है

और अब घास के बने
छोटे छोटे घरों में
अन्धेरा छा रहा है ।

2

अगर मैं अपने हाथ
नीचे पृथ्वी के पास ले जाता

मैं वहाँ से उठा सकता था
मुट्ठी भर अन्धेरा

वहाँ हमेशा अन्धेरा रहता है
जिसपर हमने कभी ध्यान नहीं दिया ।

3

जैसे-जैसे बर्फ़
भारी होती जाती है,
मकई के डंठल मुरझाते चले जाते हैं

और खलिहान
घर के क़रीब
खिसकता जाता है ।

बढ़ते तूफ़ान में
खलिहान हमेशा
अकेले ही सरकता है ।

4

खलिहान मकई से भर चुका है
और अब
खिसक रहा है हमारी ओर

किसी पुराने जहाज़ के
थके हुए ढाँचे की तरह
समुद्री तूफान में बढ़ रहा है हमारी ओर;

पर जहाज़ की छत पर खड़े
सभी खल्लासी
अन्धे हो चुके हैं कई वर्ष पहले ही ।

अंग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़ें
               Robert Bly
     Snowfall in the Afternoon

1

The grass is half-covered with snow.
It was the sort of snowfall that starts in late afternoon
And now the little houses of the grass are growing dark.

2

If I reached my hands down near the earth
I could take handfuls of darkness!
A darkness was always there which we never noticed.

3

As the snow grows heavier the cornstalks fade farther away
And the barn moves nearer to the house.
The barn moves all alone in the growing storm.

4

The barn is full of corn and moves toward us now
Like a hulk blown toward us in a storm at sea;
All the sailors on deck have been blind for many years.