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सूरज सॅे पहिनें / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
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जे सूरज सॅ भी पहिनें रोज, भोरे-भोर जागै छै
वही चैटिया केॅ जीवन भर, पढ़ै मॅ मोन लागै छै।
विषय सबटा लगै हलके, सिहारै पाठ जे कल के
कि ओकरा देखथैं धड़फड़ बगल से रोग भागै छै
जे सूरज सॅ भी पहिनें रोज,
जे खेलैं मेॅ बहादुर खूब, राखै छै मनों मेॅ हूब
वही सीमा के दुश्मन पर, दनादन तोप दागै छै
जे सूरज सॅ भी पहिनें रोज,
वही चैटिया केॅ जीवन भर पढ़ै मॅ मोन लागै छै।