भारतीय संस्कृति की थाती भगवद्गीता ।
नित्य नया आलोक जगाती भगवद्गीता ॥
जगा रही चेतना हिमालय से सागर तक ।
अखिल विश्व में शान्ति सजाती भगवद्गीता ॥
संस्कृत, संस्कृति और सभ्यता की संरक्षक,
मानवता के छनद सुनाती भगवद्गीता ॥
बनी हुई है सेतु पूर्व-पश्चिम का पावन,
सदा समन्वय-ध्वज फहराती भगवद्गीता ॥
वेंदों की छाया में पलकर बढाती भगवद्गीता ।
ऋषियों का सम्मान बढाती भगवद्गीता ॥
बनी हुई जीवन का दर्पण वर्तमान में,
प्रखर-ज्ञान की गंगा बहती भगवद्गीता ॥
भारतीय चिन्तन का करती है विस्तारण,
सहज सत्य कस मनन कराती भगवद्गीता ॥
मिटा सभी भटकने सुझाती पंथ सत्य का,
परमज्ञान अमरत बरसरती भगवद्गीता ॥
ऋषियों के सन्देश प्रेरणाओं के निर्झर
नित्य नये लाती हरसाती भगवद्गीता ॥
हुई विश्वमानवता हर्षित उत्कर्षित अति,
मधुर प्रेम-बाँसुरी बजाती भगवद्गीता ॥
प्राणवन्त सांस्कृति चेतना समुल्लसित कर
आशाओं के दीप जलाती भगवद्गीता ॥
छाँट अन्धविश्वास गढ रही पंथ प्रगति का,
आध्यात्मिक उन्नति करवाती भगवद्गीता ॥
जगा विश्वबन्धुत्व धो रही कटुता जग की,
सघन मोह आवरण हटाती भगवद्गीता ॥
बिखराती रश्मियाँ सनातन रवि की सोनल,
नव्य भव्य अति दिव्य प्रभाती भगवद्गीता ॥
नैतिक मूल्यों का विकास उद्देश्य मनोहर
सत्य शिवं सुन्दरम्र गाती भगवद्गीता ॥