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ताजमहल चांदी के / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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तरावलियाँ लहर-लहर पर प्रतिबिम्बत है ऐसे-
खिला दिये नभ ने आकर ज्यों अमल कमल चाँदी के।

झलमल-झलमल झलक रहा नीलाम्बर अति हर्षित-सा
रहे सुधार जिसे हर क्षण कर-लहर सरल चाँदी के।

थिरक रही रश्मियाँ अप्सराओं-सी अखिल भुवन में,
धार-धार ने आज किये श्रृंगार विमल चाँदी के।

नीरव-नीरव धरा, व्योम भी है नीरव-नीरव-सा,
नीरव-नीरव है निर्झर ज्यों स्त्रोत तरल चाँदी के।

छवि सर्वतोभद्र पूनम की मुदमंगलकारी है
बदल रही है नित्य मनोहर ताज नवल चाँदी के।

आकर्षण से जिसके ज्वारिल सागर होता,
और चूमने को बढता है अधर-धवल चाँदी के।

हुए चद्रिका स्नात बाग, बन, गिरि कर्पूरी मोहक,
प्रणय साधनारत हों जैसे ताजमहल चाँदी के।