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नैन भर देख लू / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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रूप की सर्जना हो रही ।
वन्दना बन्द-ना हो रही ।।

कूप मण्डूकता भाग्य में-
कीर्ति की कामना हो रही ।

घोर आतंक उल्लासमय,
शान्ति की साधना हो रही ।

चाँदनी छा गयी उर भवन
प्यार की अर्चना हो रही ।

हैं बवण्डर उठे मरूथली
फिर प्रणय वंचना हो रही ।

गीत अधरों ढले याद के-
फिर विरह व्यंजना हो रही ।

नैन भर देख लूँ बस तुम्हें
अक्षरी भावना हो रही ।