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हलकू की इकलौती चादर / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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हर तेवर में धार हो गयी।
बर्फीली बौछार हो गयी।

आ पहुँची है सर्दी जब से
हवा खुली तलवार हो गयी।

बुढिया-सी निस्तेज धूप है
जैसे रवि की हार हो गयी।

साँझ-सवेरे हुए हिमानी
दुपहर भी लाचार हो गयी।

महलों से क्या लौटी सर्दी
फुटपाथों की मार हो गयी।

ठिठुर-ठिठुर कर आज गरीबी
जीने को है भार हो गयी।

हलकू की इकलौती चादर
तार-तार बेकार हो गयी।