भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तन भी दुखिया मन भी दुखिया / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:53, 3 दिसम्बर 2021 का अवतरण
तन भी दुखिया
मन भी दुखिया
अच्छे गीत कहाँ से लाएँ ?
अन्धकार कोसों गहरा है
मौसम भी अन्धा-बहरा है
सुख के दरवाज़े के आगे
ईति-भीतियों का पहरा है
पस्त क़दम हैं
आँखें नम हैं
हाल जिगर का किसे सुनाएँ ?
क्षण-क्षण, पल-पल अदल-बदल है
नया-पुराना सब कुछ छल है
व्यक्ति-व्यक्ति की नारेबाज़ी
सिर्फ़ टूटने की हलचल है
सुबह धुंधलका
शाम तहलका
किसे रात की बात बताएँ ?
भाव परस्पर हैं टकराते
शब्द अर्थ से मेल न खाते
शिल्प-विधाएँ तोड़-मोड़कर
वही कथानक हम दुहराते
दब्बू स्वर है
दम्भ मुखर है
किसे कहाँ तक यों बहकाएँ ?
अच्छे गीत कहाँ से लाएँ ?