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पीड़ा का श्रृगार / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
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राग व्यथा का कभी न गाते।
आँसू के ही दिये जलाते।
फुटपाथों पर झिल्ली नीचे
शान्त दीपमालिका मनाते।
घबराये से रहते हरपल,
नेता अधिकारी जब आते।
उमर पचीसी तन पचपन का,
रोग दर्द पाहुन बन जाते।
महगाई जब हमें जलाती,
हाथ सेंक कर वे हरषाते।
चुरा चुरा कर मेरी निदिया,
पीड़ा का श्रंगार सजाते।
मरुथल की सूखी बगिया में
नागफनी के फूल खिलाते।
जब उर में करुणा जगती है
गीत अघर पर हैं स्वर पाते।