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भौरों रे! गुंजार करो / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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आयी है वसन्त की बेला,
भौरों रे! गुंजार करो।

सोये सोये मन प्राणों में,
अभिनव रस संचार को।

कलियों! जी भरकर मुस्काओं,
फूलों गन्ध लुटाओ रे!

गाओ गीत कोयलें! मिलकर
बगिया का श्रंगार करो।

धुला धुला-सा नीलगगन है,
तारों! रे चमको जी भर,

धवल चन्द्रिके! मन मन्दिर में
प्यार भरा उजियार करो।

सजो दिशाओं! खुशी मनाओ
धरती अम्बर एक करो।

जीवन की रागिनी मधुर हो,
कुछ ऐसी झनकार करो।

हर्ष और उल्लास जगा है
कोई कथा सुनाओं रे!

अपनी संस्कृत परंपराओं
का जग में विस्तार करो।

यह वसन्त है चार दिनों का
रंग बिरंगे फूलों रे!

प्यार तितलियों से कुछ कर लो
आशा को मत क्षार करो।