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सिगरटे पीती रही / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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शहर में बजने लगी शहनाइयाँ।
नचती गाती मिलीं परछाइयाँ।

छम छनन छम छमकते चमचे दिखे,
हो रही गुंजित सभी अगनाइयाँ।

'धुम्रपान निषिद्ध' होता ही रहा,
सिगरटें पीती रही तरूणाइयाँ।

चाँदनी घायल सिसकती ही रही,
और चलती ही रही पुरवाइयाँ।

गया निर्मोही चला परदेशिया,
टेरती ही गयी अँगड़ाइयाँ।