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गंधों के मेले / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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फूलों पर भौरों की टोली मडराती है।
कलियों का सम्मेलन है कोयल गाती है।

वासन्ती उपवन में गन्धों के मेले हैं।
झूलों पर चन्द्रिका उर्वशी मुस्काती है।

श्रृंगारिक आशाएँ सारी हुई पुरस्कृत
धरती से अम्बर तक यौवन की थाती है।

मलयानिल आता गाता है लहराता है,
रजनीगंधा थिरक उठी मदमाती है।

पुलकित है ऋतुराज आज शृंगार सजाये,
जीवन की रागिनी मधुर है फगुनाती है।

नन्दनवन की दिव्य बहारें महामहिम सी,
कर कमलों में लिए जयध्वज फहराती है।

ज्योति महोत्सव मना रहा है चन्द्र व्योम पर।
धवल चन्द्रिका नदी धार-सी लहराती है।

कहीं जगाती खुशियों के मनमोहक निर्झर,
कहीं आँसुओं से प्राणों को नहलाती है।