भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धीरे धीरे / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:43, 3 दिसम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आप पधारे मेरे उर में धीरे धीरे।
हुए प्रतिष्ठित अन्तःपुर में धीरे धीरे।
सजी आपकी वासन्ती छवि हर उपवन में,
गूँज रहा तू ही हर सुर में धीरे धीरे।
कभी तड़ित मुस्कान बिखरती नभ पर तेरी
तू ही मुखरित हर नूपुर में धीरे धीरे।
भव वारिध से पार शक्ति तेरी ही करती,
ले जाती है फिर सुरपुर में धीरे धीरे।
नाम तुम्हारा पावन है, यादें भी पावन
शान्ति जगातीं क्रोधातुर में धीरे धीरे।
धर्म कर्म तप त्याग ज्ञान से हीन हो गये,
शक्ति जगाओ फिर भुसुर में धीरे धीरे।
धनीभूत हो जाओ मेरे रोम-रोम में,
प्रीति बढ़ाओं भक्ति मधुर में धीरे धीरे।