मई हूँ पर्यावरण / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
रहना है खुशहाल तुम्हें यदि मुझको भी न मिटाओ तुम।
मैं जंगल हूँ मेरे सीने में मत आग लगाओ तुम।
धरती की जीवन धाराओं में मत घोलो और गरल
विष वल्लरी उगायी जो है उसे न और बढ़ओ तुम।
जागो जागो भैतिकता की निद्रा से जागो मानव!
टपने भावी जीवन की रक्षा का साज सजाओ तुम।
जगह जगह पर पेड़ लगाओ जल बरसाओ सुख पाओ
धुँआ और ध्वनि, कूड़़े कचरे पर प्रतिबन्ध लगाओ तुम।
भीतर बाहर के दूषण हैं यक्ष प्रश्न से खड़े हुए
आगे बढ़ो समाधानों का अनुसंधान कराओ तुम।
पूरित हो उज्ज्वल भविष्य उज्ज्वल विचार मन से
उठो कर्णधारों भारत के धरती स्वर्ग बनाओ तुम।
रुक जायेगा इन जहरीली गैसों का प्रसार क्षण में
किन्तु लोभ की सीमाओं से पहले बाहर आओ तुम।
सस्यष्यामला वसुन्धरा ने संस्कृति को पाला पोसा
आम, नीम, तुलसी, बरगद, पीपल पर अघ्र्य चढ़ाओ तुम।
हरियाली है खुशहाली-खुशहाली ही हरियाली है
मैं हूँ पर्यावरण तुम्हारा मुझको शीघ्र बचाओ तुम।