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ख्वाबों में / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
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गंधों में हरपल बहता हँ ।
गीत और गजलें कहता हूँ ।
छंद प्रतीक्षा करते रहते,
मैं तो ख्वाबों में रहता हूँ ।
कवि हूँ पर अदना सा नौंकर,
हर क्षण व्यंग्य प्रखर सहता हूँ ।
प्राणों में है घिरी अमावस,
ध्यान पूर्णिमा का करता हूँ ।
अपना जीवन है पलाशवन
काँटों में रंगत भरता हूँ ।
तन मन धन भोजन भटकन में,
रोज रोज जीता मरता हूँ ।
वासन्ती रस रास बुलाते
पतझारों से, पर डरता हूँ ।
तेरे बन्द दृगों के आगे,
याचक बना पड़ा दहता हूँ ।