भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़र आता है कुछ-कुछ बेवफ़ा-सा / सुरेश कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:53, 12 दिसम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नज़र आता है कुछ-कुछ बेवफ़ा-सा
वो जैसा भी है लेकिन है भला-सा

डरा देती हैं अब दरिया की बातें
मुझे लगता है सब कुछ डूबता-सा

न जाने कौन सो जाता है मुझमें
सफ़र से लौटकर हारा-थका-सा

वो कितनी फ़िक्र रखता है हमारी
दिखा जाता है जब-तब आइना-सा

चिराग़ों में ये कैसी कँपकँपी है
कि हर चेहरा दिखाई दे बुझा-सा