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तुमने कैसी बांसुरी बजाई / नीलमणि फूकन / दिनकर कुमार

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एक दिन एक भिक्षुक की बांसुरी सुनकर

तुमने कैसी बांसुरी बजाई
इश्क़ मुश्किल जिस्म फ़ानी
जानकर भूख या
सीने से टकराती हुई प्यास
किसका
वह क्या चिर सत्य है ?

बहुत पहले ही
तुम जो ख़ुद को भूल गए
बांसुरी है क्या तुम्हारे होठों पर
महसूस की गई तसल्ली की धरती
श्रुति का अगम्य आनन्द
या दर्द का सैलाब

अपरान्ह को गिराकर
गुलाबी हलचल
कलेजे में सुलगकर
जीवन है क्या
सांस बदलने की राह में
तुम्हें बांसुरी ही मिली
क्या वह चिर सत्य है ?

किस सागर के किनारे था तुम्हारा घर
तुमने कैसी बांसुरी बजाई
ज़मीन फटकर निकलेगा मानो
पाताल का पानी ।

मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार