भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अधरों की वंशी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 21 दिसम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
113
सन्देशे खोए हैं
तुम क्या जानोगे
हम कितना रोए हैं!
114
बाहों में कस जाना
तन से गुँथकरके
मन में तुम बस जाना।
115
बाहों के बंधन में
अधरों के प्याले
साँसों के चंदन में।
116
यों मत मज़बूर करो
हम दिल में रहते
हमको मत दूर करो।
117
विधना का लेखा है
आँखें तरस गईं
तुमको ना देखा है।
118
रस दिल में भर जाना
अधरों की वंशी
अधरों पर धर जाना।
119
है उम्र नहीं बन्धन
खुशबू ही देगा
साँसों में जो चंदन।
-0-
(3 -12-21 )