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अधरों की वंशी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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113
सन्देशे खोए हैं
तुम क्या जानोगे
हम कितना रोए हैं!
114
बाहों में कस जाना
तन से गुँथकरके
मन में तुम बस जाना।
115
बाहों के बंधन में
अधरों के प्याले
साँसों के चंदन में।
116
यों मत मज़बूर करो
हम दिल में रहते
हमको मत दूर करो।
117
विधना का लेखा है
आँखें तरस गईं
तुमको ना देखा है।
118
रस दिल में भर जाना
अधरों की वंशी
अधरों पर धर जाना।
119
है उम्र नहीं बन्धन
खुशबू ही देगा
साँसों में जो चंदन।
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