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तुम जिस तरह हो / सुमन पोखरेल

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मैं
किसी ना-जिंदा जीवन के किनारे पे खड़े रहकर
सुन्न हवा की तरह अनुपस्थित किसी आकृति को गले लगाकर
जीने के वहम में छँछा मद पे ही ख़ुश हो रहा होता ।

आज तक
दूसरों के बताये हुए अर्थ से ही जानता रहा होता शीतलता को,
गुलाब या उसी तरह के किसी हृदयविहीन फूल की सुगन्ध से ही
मदहोश हो रहा होता,
अगर तुम्हारे प्यार के कोमल आभासों ने
मेरा हृदय के परागों पर
स्नेहिल सुगंध बिखेरी न होती ।

मेरे गीतों के मूर्च्छनाएँ,
मेरी कविताओं के बिम्ब,
मेरी जीवनकथा,
पत्ते गिरे हुए पेड़ दर पेड़ घूमते रहनेवाले
पतझड़ की हवा की तरह सौन्दर्यविहीन
उकता देनेवाली गूँगी दौड़ पर
बिना गंतव्य दौड़ रहे होते ।

सूरज की किरणें
हर सुबह ज़िन्दगी लेकर
मेरी उमंगों को ‍हौसला देने नहीं आतीं ।
मुझे गाने सुना सुना के उड़ चलनेवाली चिडियाँ
अपने स्वर मे मन के अंतर से प्रेम भर कर
गा नहीं पाते ।


तुम्हारे कोमलतम् शब्दों से भी टूट सकने वाला
प्रेम जैसा ही कोमल मेरे दिल को चुभ कर
अगर न तोड़ देती जीने की लय को कभी-कभी, तो
प्रेम का आधा रहस्य समझे बगैर ही
जीवन संगीतमय होने का तथ्य मालूम किए बिना ही
ज़िन्दगी कह कर
समय की रिक्त सीढ़ियाँ चढ़ के भाग निकले होते
मेरे सारे तज़ुर्बे ।

अपनी आकाङ्क्षाओं के अनगिनत रंगीन छटाओँ से
जिस तरह सजायी हो
जिन्दगी के मेरे दृष्यों को,
अगर वैसा न होता तो
सृष्टि की सौन्दर्य का भ्रमित व्याख्या कर के ही
मुरझा के गिर चुकी होती मेरी इच्छाएँ ।

मेरी जिन्दगी की जिन धूनों पे
जिस तरह हो तुम
उस तरह न होती अगर
तो,
सामर्थ्य से सम्पूर्ण भर कर
हजार जिन्दगी जिने की लालसा ले के
खड़ा है जो,
तुम्हारे सामने, वो मैं नहीं होता ।



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(नेपाली से कवि स्वयं द्वारा अनूदित)