Last modified on 14 जनवरी 2022, at 13:26

आसमान से / सुमन पोखरेल

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 14 जनवरी 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुमन पोखरेल |अनुवादक=सुमन पोखरेल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नीचे तमन्नाओँ से खेलते हुए जिन्दगियाँ दिखाई नहीं देती आसमान से ।
ना तो पहाडों की सहनशीलता टूटकर फिसले हुए जमीन के
घाव की गहराई ही दिखाई देती है ।

बादल से ढका हुआ आसमान से
आँखों पे ही सटा हुआ आसमान भी दिखाई नहीं देता
नीचे-नीचे ही बह चलता है, हवा भी दिखाई नहीं देता ।
ना तो आँधी लेकर थरथराए हुए पेड़ों के दिल का
कम्पन ही दिखाई देता है ।

आसमान से
कोमल होते-होते मर जाने के बाद
जीने के लिए कठोर बने हुए पत्थरों के
मन को सहलाया नहीं जा सकता,
बारी-बारी से ताप और पाला के मार खा कर भी मुस्कुरा रहे
फूलों की कोमलता को छुआ नहीं जा सकता,
बरसों तक निरन्तर दब जाने के बाद जाग उठा हुआ
भूकम्प की शक्ति नापी नहीं जा सकती
गन्तव्य तक पहुँचे बिना न रुकने का अठोट ले कर दौड़े हुए वेगों का
सामर्थ्य का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता,
बगीचे के पास एक दूसरे के मन पे सो रहे प्रेमियों के
सपनों को देखा नहीं जा सकता ।


बस्ती दर बस्ती इतिहास को बहाते हुए दौड रही नदी भी
स्थिर दिखाई पडती है आसमान से ।
पहाड़ों की सृजनशील गोद भी प्रभावहीन दिखाई देती है ।
मैदानों पे लहलहाते हुए सृष्टी की
कलियाँ और फूल भी सुवासहीन लगते हैं ।
किसी साहस का कभी न चढ़ सका हुआ हिमालय भी
नाटा दिखाई देता है ।
इन्सानों की आस्था से तराश कर उठाया हुआ धरहरा भी
बौना दिखाई देता है ।

कुछ देर तो ऐसा भी लगता है कि
आसमान से देखने पे
धरती के कोने-कोने का संवेदन को छुआ जा सकता है
हवा और विचारों के रंगों को भी देखा जा सकता है।
और सैकड़ों क्षितिज के उस पार तक सम्पूर्ण सृष्टि
सनातन से ही शान्त है जैसा दिखाई देता है ।

सदा आसमान पे बैठकर बोलनेवालों से
पूछ लें अब एक बार,
क्या संसार की वास्तविकता वैसा ही है
जैसा आसमान से दिखाई देता है ?


.......................................................
(नेपाली से कवि स्वयं द्वारा अनूदित)