स्वप्न भूमि / क्रिस्टीना रोजेटी / सुधा तिवारी
जहाँ सूर्यरहित नदियाँ हैं डुबोती
अपनी तरंगों को आँसुओं-सी
वह एक जादुई नींद में सोती है :
उसे जगाओ नहीं ।
एक अकेले तारे के पीछे,
वह चली आई है बहुत दूर से
ढूँढ़ती हुई जहाँ परछाइयाँ हैं
उसकी छवि की ।
वह छोड़ आई है गुलाबी सुबह,
वह छोड़ आई है फ़सलों के खेत,
सर्द और सूने साँझ के लिए
और पानी के झरने ।
नींद के पार, ज्यों देखती हो घूँघट से,
वह देखती है आकाश को ज़र्द पड़ते हुए,
और सुनती है बुलबुल को
जो गाती है उदासी में ।
विश्रान्ति, विश्रान्ति, एक पूर्ण विश्रान्ति
भौहों और वक्ष से
फिसलते हुए;
उसका रुख़ पश्चिम
की ओर है,
जामुनी भूमि की ओर ।
वह नहीं देख सकती है अन्न को
पकते हुए पहाड़ी पर और मैदान में;
वह नहीं महसूस कर सकती बारिश को
अपने हाथों पर ।
विश्रान्ति, विश्रान्ति, हमेशा के लिए
किसी शैवाल भरे किनारे पर;
विश्रान्ति, विश्रान्ति दिल के
मर्म तक
जहाँ वक़्त ठहर जाए :
सो जाओ कि कोई दर्द जगा
न सके;
रात जिसे कोई सुबह भंग
न कर सके
जहाँ आनन्द अभिभूत कर ले
उसकी पूर्ण शान्ति को ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी
लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
Christina Rossetti
Dream Land
Where sunless rivers weep
Their waves into the deep,
She sleeps a charmed sleep:
Awake her not.
Led by a single star,
She came from very far
To seek where shadows are
Her pleasant lot.
She left the rosy morn,
She left the fields of corn,
For twilight cold and lorn
And water springs.
Through sleep, as through a veil,
She sees the sky look pale,
And hears the nightingale
That sadly sings.
Rest, rest, a perfect rest
Shed over brow and breast;
Her face is toward the west,
The purple land.
She cannot see the grain
Ripening on hill and plain;
She cannot feel the rain
Upon her hand.
Rest, rest, for evermore
Upon a mossy shore;
Rest, rest at the heart's core
Till time shall cease:
Sleep that no pain shall wake;
Night that no morn shall break
Till joy shall overtake
Her perfect peace.