भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुखदु:खको यही पहिचान / वीरेन्द्र पाठक

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 19 जनवरी 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= वीरेन्द्र पाठक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सुखदु:खको यही पहिचान, चन्चल मन चन्चल प्राण
लक्ष्य कठिन यही व्यवधान, चन्चल मन चन्चल प्राण।

पूजा, जप, तिर्थाटन, सब हुन् बाहिरी अङ्ग
भित्र प्रभु दर्शन बिना प्रेम हुँदैन उनी सङ्ग
सन्सारमा प्रीति बसेको यही त हो अज्ञान
चन्चल मन चन्चल प्राण, चन्चल मन चन्चल प्राण।

साकार छन् सब नाशवान् ,आत्मा अमर छ यही महान
तैपनि लोप भएको छैन जीवनमा डरको मुहान
अभय पद प्राप्तिका लागि यही त हो बिधान
उत्तम ध्यान स्थिर प्राण, उत्तम ध्यान स्थिर प्राण ।