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न घरलाई घर कहिन्छ / शुक्रराज शास्त्री
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नारी नै दरबार हो
एक मात्रै धर्म-साधन
नारी घरको द्वार हो
घरकी देवी नारी नै हो
नारी घरको ज्योति हो
राजलक्ष्मी नारी नै हो
नारी माणिक मोती हो
राजलक्ष्मीतुल्य भई
राजमन्त्रीतुल्य भई
स्वर्गराज भो अबको
प्राप्त हु्न् योगको