भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न घरलाई घर कहिन्छ / शुक्रराज शास्त्री

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:12, 20 जनवरी 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुक्रराज शास्त्री |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नारी नै दरबार हो
एक मात्रै धर्म-साधन
नारी घरको द्वार हो

घरकी देवी नारी नै हो
नारी घरको ज्योति हो
राजलक्ष्मी नारी नै हो
नारी माणिक मोती हो

राजलक्ष्मीतुल्य भई
राजमन्त्रीतुल्य भई
स्वर्गराज भो अबको
प्राप्त हु्न् योगको