भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाँच्नुको मज्जा / राज माङ्लाक

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:11, 20 जनवरी 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज माङ्लाक |अनुवादक= |संग्रह= लिम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लुतो लागेको
कुकुरले जस्तै रगतपच्छे
घरी यता – घरी उता
समस्याहरु कन्याइरहेको छु

जत्ति कन्यायो
उत्ति कन्याउँ लाग्छ ।