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माया गयो झन पर पर / रवीन्द्र शाह
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माया गयो झन पर पर
नौ डाँडा काटेर कुन घर
जाने गयो परदेशतिर
माया साटी लिएर गएन
बाँचू भने खातिर कसको
अब उनको भरोसै रहेन
साथ छुट्यो जीवनभरि
प्रीति मेरो कहिल्यै छुटेन
बिर्सिगयो अचम्मैगरी
चाहनाको भावना टुटेन
आँशु झारी बोलाएँ मैले
जानेले त फर्केर हेरेन
छाती फारी देखाएँ मैले
ढुङ्गे दिलमा असरै परेन