गहरी नींद / प्रशान्त 'बेबार'
सुनो थोड़ा सरक के लेटो,
सलवटों की फ़िक्र न ही करो
इन्हें मेरे दिल बहलाने के लिए रहने दो
ये अकेले में बड़ा बतियाती हैं मुझसे
और वो सिहराने वाली
तो मुझे सोने नहीं देती,
तुम्हारी ही सौगात मालूम होती है
मेरे सूखे बिखरे बालों से
जो खेलते हो अब रहने दो
चाँदी बिखरेगी तो फिर
तुम्हें नींद नहीं आएगी
और यह सूखे होंठ मेरे,
किसी उम्रदराज़ गुलाब से,
तुम्हारी गर्दन के पिछले हिस्से पे
चित्रकारी करेंगे
तुम्हें गुदगुदाने लगेंगे
तो नींद टूट जाएगी
गहरी नींद में सो गए हो शायद
मुझे भी एक झोंका नींद का
या तमाड़ा आया होगा
आँगन वाले नीम पे
सावन देर से आया होगा
तुम्हारी यह मूँछों वाली
बड़े फ्रेम की तस्वीर
बहुत पसंद है मुझे,
बस उसपे यह माला,
कतई भद्दी लगती है
जो तकती है स्याह रात में
सुर्ख़ काँटों सी
कभी गर्दन में चुभती नहीं तुम्हें ये?
मेरे तो काट काट के लकीरें बना दी हैं देखो!