इंद्रधनुषी प्रेम / हर्षिता पंचारिया
आवश्यक नहीं है "चुम्बक" का,
सिर्फ़ "लोहे" को देखकर आकर्षित होना
विज्ञान कहता है
"चुम्बक" का "चुम्बक" के प्रति "आकर्षण" उतना ही है
जितना "लोहे" के प्रति।
जितना पवित्र है,
उतना ही निर्मल
धर्म सम्मत है
"गंगा" और "यमुना" का मिलन
ये मिलन,
यूँ ही "संगम" नहीं कहलाता।
कहाँ बनाएँ प्रकृति ने प्रेम के कोई नियम
एक "पेड़" का दूसरे "पेड़" को आलिंगन
बिल्कुल वैसा ही है,
जैसे एक "लता" का किसी "पेड़" को आलिंगन।
धर्म की परिभाषा में दो "नदियों" का मिलन पुण्य है।
वैज्ञानिक भाषा में
एक ही वस्तु का वैसी ही वस्तु के प्रति आकर्षण सम्भव है।
प्रकृति ने नहीं बनाएँ कभी प्रेम के नियम।
फिर भी "समलैंगिक"
अप्राकृतिक
अवैज्ञानिक
अधार्मिक
होने की प्रवंचनाओं में
महज़ इसलिए झूल रहे हैं कि
वो मनुष्य हैं।