भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में पिता / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:52, 31 मार्च 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शहर में आए महीने बीत गए
एक दिन लाठी टेकते हुए चले धीमे से
अर्पाटमेंट के पार्किंग एरिया में
स्केट बोर्ड चलाकर आया बच्चा
टकराया पिता से
बच्चे इकट्ठे हो गए
सेकूरिटि दौड़कर आया
माफी मांगी बच्चे के मां बाप ने
पिता को अस्पताल ले गए
रास्ते में मुझे फोन से सूचित किया
मैंने होमनर्स का इंतज़ाम किया
पिता अस्पताल से वापस फ्लैट में पहुँचे
होम नर्स ने बिस्तर बिछाया
दवाई दी
रोटी खिलाकर
चली गई अपार्टमेंट के बी ब्लाक में
पिता की दृष्टि शोकेस पर पड़ी
वहां सीपियों, शंखों, घोघों
की आहों- कराहों में
बूढ़े पिता की चीख विलीन हो गई