भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दाम्पत्य - 1 / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 31 मार्च 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शुरूआती दिनों में
सब कहीं प्यार नज़र आता था
लगता था सारी प्रकृति
झूम उठी है सिर्फ हमारे लिए
समझ रहे थे कम
चाह रहे थे एक दूसरे को ज्यादा
रात को भोजन करने पर
एकाध कौर
थाली में छोड़ देता मैं
वह चाव से खाती
ज़िंदगी के वो खूबसूरत पल
लगता था कि
हवा, मेघ, आसमान
सब हमारे लिए बना था