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मैंने तो बस पीर कहा था / चंदन द्विवेदी

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लक्ष्यों से भटके शब्दों को
अर्थों की जागीर कहा था
आंखों में छलके मोती को
बेसब्री का नीर कहा था
छंदों को कुछ ताकत दी तो
आहत करता तीर कहा था
तुम ही बोलो मैं क्या करता
एक अकेला महफ़िल में
सबने उसको कविता कह दी
मैंने तो बस पीर कहा था...

बाकी था प्रेमपने में जो
उसको एकाकी मार रहा
मयखाने में पीकर पहुँचा
था साकी जीवन हार रहा
सुधबुध खोना ही था गर तो
पाकर खो लेते एक दफे
बेवजह के इन लफ्जों को
सांसों की जंजीर कहा था
सबने उसको कविता कह दी
मैंने तो बस पीर कहा था