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उन्होंने धर्म खड़े किए / विनोद शाही

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उन्होंने धर्म खड़े किए
वे प्रेम को टालते रहना चाहते थे

मैं जिस जिस के प्रेम में था
उसे उन्होंने माया कहा
मैं उनके प्रति बैरागी हो गया ।

उन्होंने दिए कुछ शब्द
और उनकी प्रतिमाएँ
कहा, इनसे प्रेम करो
मैंने अपनी बाँहें खोली ही थीं कि
रोक दिया गया
और उनके पैरों में पड़े रहने को कहा
इस तरह एक प्रेमी में
एक भक्त का जन्म हो गया

बाँटते रहे वे
एक दूसरे का चढ़ाया प्रसाद
एक दूसरे में अदल बदल कर
और कहते रहे उसे
ईश्वर की करुणा की बरसात

फिर हुआ यह कि उनकी आँख बचाकर
मेरे भीतर ही मौजूद किसी देवता
या हो सकता है किसी असुर की करुणा
बरस गई मुझ पर
और मुझे लगा
मैं फिर से सचमुच के प्रेम में था

मैंने पाया मेरा प्रेम में होना
ईश्वर की
बेरहम आलोचना की तरह आया था

यह देख उन्होंने पहले कामदेव को
फिर सन्त वेलेन्तीन को
और फिर राँझे जोगी को गाली दी
और अपने धर्म बचाकर चले गए

उनके जाते ही पूरी बात साफ़ हो गई
मैंने पाया मेरे होने से पहले तक
ईश्वर अधूरा था
तभी तो मैं हुआ था

और मेरे प्रेम में होने के बाद
न मैं हुआ था
न ईश्वर रहा था