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प्रेम है--- / कविता भट्ट

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मुस्काते हुए धीमे से बोला चाँद-
अरे झील! तुम बहुत सुंदर हो।
मैं तुमसे अथाह प्यार करता हूँ,
तुम्हें देखना चाहता हूँ जीभर।
झील ने मुस्काते हुए उत्तर दिया-
मुझे निहारना तो सामान्य बात है;
सुनो! विशेष तो मुझमें उतरना है।
चाँद उतर गया, गहरी झील में।
वो बोली उतरना सामान्य बात है-
नितांत भिन्न तो मुझमें डूबना है।
चाँद डूब गया, उस गहरी झील में।
अब झील मंद मुस्काते हुए बोली-
मुझमें डूबने का नहीं बड़ा महत्त्व,
किंतु अति विशिष्ट है, डूबे रहना।
चाँद पूरा डूब गया मुदित झील में।
झील ने आँखें मटकाते हुए कहा-
सुनो चाँद! उबरना तो बहुत दूर;
यह अब कभी सोचना भी मत।
चाँद अब पूरा झील में खो चुका
प्रेम है...उतरना...डूबना...डूबे रहना...
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