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युद्ध / अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'

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आओ ज़रा! कर ही लें
हम युद्ध!
एक दूसरे के ज़िस्म में
ठूँस दें पीतल की
जहरबंद कारतूस!
आओ भयभीत कर दें
सरहदों के परिंदों को इस क़दर
कि वे करने लगे पलायन
अपनी चोंच में दबाकर घोंसले!
आओ, कर आँखें लाल
रक्तदंतिका की तरह
खप्पर में भर लें
एक दूसरे के रक्त,
जिससे कि तृप्त हो सकें
हमारी दिग्भ्रमित कामनाएँ !
आओ किसी पशु की भांति
गांथ दें अपनी नुकीले दाँत
नोंचने लगें
एक दूसरे की बोटियाँ!
चलो, आज हम दोनों
मिलकर पकाते हैं
बारूद की खिचड़ी, ताकि
खाते ही गहरी नींद
सो जाए हमारे सैनिक !
आओ चले,
कुछ हरी खनकती चूड़ियों को
पत्थर पर रखकर तोड़ते हैं,
ढूंढो कोई रंगरेज,
जिसके पास ऐसा कोई रंग हो
जो दुल्हन के शादी वाले
लाल जोड़े को कर दे सफेद!
चलो कुछ बेटियों से मिलते है,
और बुझा देते हैं
उनके जन्म दिवस पर
जलनेवाली रंग-बिरंगी मोमबत्तियाँ !
आओ, हम दोनों मिलकर
बताते है नन्हें बच्चों को
यतीमखाने का रास्ता,
आओ आज फोड़ ही डालते हैं
वर्षों से सहेजे गए
परमाणुवाले गुल्लक,
कि वे दर्ज करा सकें
अपनी कलम की निब तोड़ने से पहले
विध्वंस और विनाश का इतिहास!
आओ करें कोशिश कुछ ऐसी,
कि विलुप्त ही होने लगे
सफेद बाघों की तरह
हमारी भी प्रजाति ,
आओ मुक्त ही कर दें
आज के मानव को
इस धरा से कि
जब कभी फिर से प्रकृति
अंकुरित करे हमारी प्रजाति,
मानव मुक्त रह सके
इन आदमखोर
मुल्कों की सरहदों से।