भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता जी / अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:54, 14 अप्रैल 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब भी पिता जी
स्टेशन से घर
पाँव दु:खाते पैदल ही आ जाते हैं !
इस दलील पर
कि खाली नहीं था कोई रिक्शा
पिता जी अब भी
भड़क जाते हैं देखकर
विधुत का बेजा इस्तेमाल,
पिता जी अब भी
लौटते हैं रोज़ पैदल ही बाजार से
लिये हरी सब्जियों का थैला,
पिता जी अब भी
अंकित करते हैं डायरी में
हर दिन के खर्च का हिसाब
पहले कई बार मैं
विचलित हो जाता था
सोच कर इसकी जरूरत ?
पर अब समझ पाया हूँ
पिता जी ने
कण- कण संजोकर रचा
और संवारा है मझे,
खुद को संयमित कर
सिखाया है मुझे कि
मेरे पाँव टिके रहें जमीन पर
तब भी जब मैं उड़ सकता हूँ
आसमान में !