ओ अभागे नैन / प्रभात पटेल पथिक
ओ अभागे नैन!
अब कुछ नींद ले लो,
अंततः इस हाल में कब तक जगोगे।
पूर्ण होने को चला है पहर अंतिम,
तारिकाएँ भी विदा लेने चली हैं।
चाँद भी होने चला है अस्तगामी,
चाँदनी अपनी प्रभा खोने चली है।
दरस-प्यासे नैन!
अब कुछ नींद ले लो
इस तरह विरहाग्नि में कब तक जलोगे!
ओ अभागे नैन
पंछियों का स्वर सुनाई दे रहा है,
भोर होने में कदाचित् शेष कुछ पल।
किन्तु ये क्या पा रहा हूँ आज नैना-
खो रहे है तप्त-विरही-अश्रु अविरल।
पहर भूले नैन!
अब कुछ नींद ले लो!
ढल चुकी है रात, तुम कब तक ढलोगे!
ओ अभागे!
प्रेम है ही अखिल जग में वस्तु ऐसी,
लगी छोड़े छूटे न अंतिम समय तक।
विश्व का प्रत्येक प्रेमी एक जैसा,
एक आशा-बन्ध में तिरता प्रलय तक।
टक निहारे नैन!
अब कुछ नींद ले लो!
पथ किसी का यों भला कब तक तकोगे?
ओ अभागे नैन