भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने किसकी पाती लेकर / प्रभात पटेल पथिक
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:25, 17 अप्रैल 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात पटेल पथिक |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जाने किसकी पाती लेकर,
निकला नभ में श्वेताभ चाँद।
अति चारु लगे पश्चिमाकाश,
सिंदूरी रंग चटक मनहर।
खगकुल की मधुरिम कुल-कुल से,
व्याकुल-सा लगता हृदय-नगर।
जब-जब निहारता हूँ सन्ध्या-
चित्रित होती कंचनी-याद!
बेला-गौधूलि चरम पर आ
पहुची लेकर के सुधि अ-जान।
जो बिछड़ गया था कहीं-कभी,
अपने ही तन से अमर-प्राण।
मन हो अधीर करने लगता
प्रियतम से अपने स्व-सम्वाद!
एकाकी-सी सन्ध्या व भोर
एकल-सा जीवन रहा बीत
ये वर्तमान नीरस-निष्फल,
निश्छल कितना बीता अतीत।
ले गया छीन मुझसे कोई-
था, जीवन के सब मधुर स्वाद।
जाने किसकी पाती लेकर
निकला नभ में श्वेताभ चाँद।