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प्रिये! आज के बाद / प्रभात पटेल पथिक

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प्रिये! आज के बाद तुम्हे हम कभी नहीं मिल पाएँगे।

जैसे कभी नहीं मिल पाती दो ग्रह की चक्रण कक्षाएँ।
जैसे कभी नहीं मिल पाती दो समान-अंतर रेखाएँ।
बस हम तुम में इसी तरह की नियत उम्रभर दूरी होगी,
कुछ दूरी आवश्यक होगी, कुछ में कुछ मजबूरी होगी,
मत करना प्रिय! याद, तुम्हे हम कभी नहीं मिल पायेंगे।
प्रिये! आज के बाद

मेरा यह सन्देशा पाकर, रोने-गाने मत लग जाना।
सुनो! प्यार में अंधी होकर, कुछ भी खाने मत लग जाना।
वैसे तो तुम समझदार हो, फिर भी क्या विश्वास तुम्हारा।
कुछ भी कर जाता है अक़्सर, प्रेम रोग का हारा-मारा।
मत लाना हृदय विषाद, तुम्हे हम कभी नहीं मिल पाएँगे।
प्रिये! आज के बाद

प्रेम पन्थ से लौट रहा हूँ, यह मेरा खुद का निर्णय है।
सोचा समझ सब बात लिखी है, इसमे रंच नहीं संशय है।
मैं अपने वादों का दोषी होऊँगा, यह मान रहा हूँ।
सपनो को थोड़ा-थोड़ा हरदिन खोऊँगा, जान रहा हूँ।
सुनो न! मेरे चाँद! , तुम्हे हम कभी नहीं मिल पाएँगे
प्रिये! आज के बाद