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मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ / प्रभात पटेल पथिक

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मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ!
समझ सकते हो तो समझो, मौन उर की भावनाएँ!
अन्यथा पर्याप्त हैं प्रिय, प्रणय की प्रचलित विधाएँ।
मैं तुम्हारी रूप-स्मृति के सहारे प्रेम में हूँ।
मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ।

पास जो होते हमारे, पाश भर, अभिसार करते।
प्राण! बस इतना समझ लो, यदि मुझे हो प्यार करते!
मैं अनुत्तर-निवेदित हूँ, तर्क-हारे प्रेम में हूँ!
मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ!

पास आने से तुम्हारे, दिवस कितने शेष हूँ मैं!
प्राण! मैं सच कह रही हूँ, तुम बिना अवशेष हूँ मैं!
लो मुझे स्वीकार! प्रिय, प्रिय-रंग धारे प्रेम में हूँ!
मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ!
मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ!