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अलग बात है / प्रभात पटेल पथिक

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कहने को तो ये दुनिया है सङ्ग में मेरे
पर तेरा साथ होना अलग बात है!

मधुमये! बिन तेरे यह नयनप्रिय-नगर-
इतना मनहर भी होकर के किस काम का?
एक पल भी जहाँ हम बिता न सके-
कुनकुनी दोपहर या कि मधु शाम का।

इस विरह-अग्नि में तप रहे माथ पर-
इक तेरा हाथ होना अलग बात है!

बिन तेरे री निधे! कुछ न चलता पता-
आज पूनम निशा या अमा रात है!
बिन तेरे ये सितारे, सितारे हैं बस-
साथ होती जो तू, तो ये बारात है!

मुक्त नभ के तले चार होते नयन-
वो रजत-रात होना अलग बात है!

किंतु तू है कि आएगी जाने न कब-
मेरा राकेश-मन नित्य घटने लगा!
आ भी जा अब, कि कोहरा विरहकाल का-
देख ले रूपधन्ये! सिमटने लगा!

चाय के कप हों दो और तू सामने-
ऐसी मधु-प्रात होना अलग बात है!

कहने को तो ये दुनिया है सङ्ग में मेरे
पर, तेरा साथ होना, अलग बात है!