ताक़तवर लोगों का भय / अच्युतानंद मिश्र
प्रिय रवि राय के लिए
सबसे ताक़तवर लोग
सबसे कमज़ोर लोगों से लड़ रहे हैं
सबसे ताक़तवर लोग हंसते-हंसते पागल हो रहे हैं
सबसे कमज़ोर लोग गठरी बाँधे
बच्चे को गोद में लिए सड़क पर
घिसट रहे हैं
वे एक के बाद एक
दुख की नदी में पार उतरकर
सूअरों को बचा रहे हैं
वे शहर की सबसे बदबूदार गली में
घास-फूस की छतें उठा रहे हैं
वे मनुष्य और मनुष्यता के बारे में नहीं
न्याय अन्याय और असमानता के बारे में नहीं
दुख के बाद सुख
रात के बाद दिन
के बारे में नहीं सोच रहे हैं
वे ख़ालिस पानी में उबल रही
चाय की पत्ती के बारे में
सीलन भरी बिस्तर पर लेटे
बुखार से तपते बच्चे के बारे में
म्युनसिपालिटी द्वारा काट दी गई
बिजली के बारे में
धर्म के बारे में नहीं
आने वाले त्यौहार के बारे में सोच रहे हैं
वे एक अन्धकार से दूसरे अन्धकार
के बारे में सोच रहे हैं
उस ख़ामोशी के बारे में
उस ख़ामोशी के भीतर दबे आक्रोश के बारे में
उस आक्रोश में छिपी हताशा के बारे में
बहुत कम सोच रहें हैं
ताक़तवर लोग
ताक़त की दवाई बना रहे हैं,
वे लोहे और फौलाद को पल भर में
मसलने का विज्ञान खोज रहे हैं
मुलायम गलीचे और लजीज़ खाने
के बारे में सोच रहे हैं
वे बार-बार ऊब रहे हैं
वे हर क्षण कुछ नया, कुछ अधिक आनन्ददायक
कुछ और सफल
चमत्कृत कर देने वाली
कोई चीज़ ढूँढ़ रहे हैं
वे हुक़्म दे रहे हैं और नाराज़ हो रहे हैं
लोगों को सँख्या में
और सँख्या को शून्य में बदल रहे हैं
सबसे ताक़तवर लोग बुलडोजर के बारे में सोच रहे हैं
सबसे कमज़ोर लोग भी बुलडोजर के बारे में सोच रहे हैं ।
सबसे ताक़तवर लोग ख़ुशी से नाच रहे हैं
सबसे कमज़ोर लोगों का दुख समुद्र की तरह बढ़ता जा रहा है
सबसे ताक़तवर लोग थोड़े हैं
सबसे ताक़तवर लोग इस बात को जानते हैं
सबसे कमज़ोर लोग बहुत अधिक हैं
सबसे कमज़ोर लोग इस बात को नहीं जानते
सबसे ताक़तवर लोगों को यह भय
रह-रहकर सताता है
एक दिन सबसे कमज़ोर लोग
दुनिया के सारे बुलडोजरों के सामने खड़े हो जाएँगे ।