Last modified on 3 नवम्बर 2008, at 20:20

ले देकर एक / हरीशचन्द्र पाण्डे

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |संग्रह=भूमिकाएँ खत्म नहीं ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोई नहीं बच पाया इस असाध्य रोग से कहा उसने

वो नहीं बचा इलाहाबाद का और लखनऊ का वो
और वो तो दिल्ली जा कर भी नहीं बच पाया
और तो और मन्त्रीजी नहीं बच पाये लन्दन जाकर

उसने दस-बारह ऐसे और रोगियों के नाम लिये
फिर रोगी की ओर निराशा से देख कर धीमे से कहा
-बच नहीं पाएगा ये

दस-बारह क्या सैकड़ों रोगी थे उस असाध्य रोग के और
जो बच नहीं पाये थे

लेकिन पास ही खड़े उनके मित्र को याद नहीं आये वे सब
उसने कहा बनारस में हैं मेरे एक घनिष्ठ
जो पीड़ित थे इसी असाध्य रोग से
बहुत ही बुरी दशा थी उनकी
वे ठीक हो गये बिल्कुल और दस साल से ठीक-ठाक हैं
उसने रोगी की ओर देख कर कहा
-ये भी ठीक हो जाएगा

वही नहीं, जहाँ जो असाध्य रोगी मिला
उसने उससे यही बात कही कि बनारस में....

उसके पास ले-देकर एक उदाहरण था