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समुद्र में नदी (कविता) / दिनेश कुमार शुक्ल

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समुद्र में विलीन
होने के पल भर पहले
आती है बाढ़
नदी की स्मृति में-
एक बादल, एक पर्वत, एक प्रपात
एक मछली, एक नाव, एक घाट
एक प्यास, एक तृप्ति
एक लहर, एक भँवर, एक नगर
बहते चले आते हैं नदी के आत्मीय...
अंक भर-भर भेंट होती है

बीतता है पल
सकल
नदी-समाज
एक साथ उठ खड़ा होता है
घुसता चला जाता समुद्र में दूर तक...
पहले पड़ाव पर
बनाती है नदी एक नया द्वीप
नवद्वीप स्वर्णद्वीप स्वप्नद्वीप
बसा कर अपना समाज
नदी निकल पड़ती है
पृथ्वी की परिक्रमा
पर एक बहुत प्राचीन कच्छप के साथ
जल पर जल करता जल यात्रा अनन्त...

हृदय के अन्तरिक्ष में पहुँच कर
आप भी देख सकते हैं
समुद्र के वक्ष पर दौड़ती नदी को

पूर्णिमा की रात
कच्छप और नदी और चन्द्रमा
मिल कर कुछ गाते हैं
कि समुद्र में ज्वार आ जाता है।