Last modified on 1 मई 2022, at 00:06

आस्था - 39 / हरबिन्दर सिंह गिल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 1 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह मेरी आस्था ही है
जो मुझे मेरी माँ-मानवता के
अस्तित्व का
अपने अंतः-पटल पर
अनुभूति प्रदान कराती है।
बहती हवाएँ
जिन पर देश की सीमाओं का
कोई पहरा नहीं है।
पर्याप्त है
महसूस करा देने के लिये
मातृभूमि प्रकृति की देन नहीं है
अपितु मानव का
एक घिनौना खेल है।

यदि संभव होता, मानव
सूर्य की किरणों को भी
कर वश में अपने
फैला देता चारों ओर
काला बाजार रौशनी का।