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आस्था - 40 / हरबिन्दर सिंह गिल

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मानवता का स्वरूप
कितना मनमोहक होगा
यह मानव के स्वयं की
आस्था पर करेगा, निर्भर।

यदि वह सोचता है
कर नजर अंदाज, मानवता को
भगवान की निगाहों में
बन जाऊंगा कृपा-पात्र
यह कांटों से
खुशबू की आशा करने से
ज्यादा और कुछ भी नहीं है।

काश मानव
बेकसूरों के आंसुओं को
अपना दर्द समझ सकता
जिंदगी की राहें
इतनी गुमराह न होती
और बस्तियों को कर उजाड़
महलों की नींव में
लाशों की चुनाई न होती।