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आस्था - 42 / हरबिन्दर सिंह गिल
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चुनरी जो प्रतीक है
नारी के मर्यादा की
क्योंकर
लुप्त होकर रह गई है
मानवता की चेहरे से
और मानव बेखबर है
घर की मर्यादा
सड़क पर आकर रह गई है।
यह इसलिये हो रहा है
हमने मानवता को
अपने जीवन का
अंग ही नहीं माना है।
तो फिर क्यों उसे
सजाने की कोशिश करें।
जरूरत है
एक एसी आस्था की
जहाँ मानव यह समझ सके
आत्मा का
उद्गम और विलीन
मानवता के गर्भ से ही है।