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आस्था - 46 / हरबिन्दर सिंह गिल

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मानव
कितना हो सकता है, स्वार्थी
इससे पहले नहीं था जाना
यह तो
उस दिन हुआ था मालूम
जब उसने
अपनी बीबी के लिये
खरीदी थी चादर
सितारों भरी
मगर नहीं थे
पैसे उसके पास
ले जाता
दवाई अपनी बीमार माँ के लिये
ताकि वह बच सकती
कफन को ओढ़ने से।

क्षमा करना
यह हर मानव के लिये
चरितार्थ नहीं होता
परंतु शंका यही है
कहीं कोई सम्राट
अपनी रानी को
रिझाने की कोशिश में
प्रजा की बरबादी का
कफन न बनकर रह जाए।