बहुत हो गई
ये खून की होली
कभी देश की
सीमाओं के प्रसार के लिये
तो कभी
अपने ही देश में
नयी सीमाओं की
उत्पत्ति के लिये।
काश मानव की लालसा
मानव के खून तक ही
रह सकती सीमित
डर नहीं होता
मानवता के झुलसने का।
झुलसने का एहसास
कितना
कष्टमय और भयावह
हो सकता है
पूछ कर देखा होता
जो हुए थे, शिकार
हिरोशिमा और नागासाकी के।