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आस्था - 63 / हरबिन्दर सिंह गिल
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परंतु मानव भूल रहा है
सड़क कभी भी
मंजिल नहीं हो सकती
वह तो माध्यम है
ध्येय-प्राप्ति का।
फिर मानव की
यह कैसी आस्था है
जो मानवता को
दिल से निकाल
सड़क पर
ले आयी है।
न जाने ऐसा कौन-सा ध्येय है
जिसकी प्राप्ति के लिये
जिंदगी को
सड़क पर खत्म
कर देना चाहता है।
शायद बस्ती को
बना श्मशान
महलों की
नींव डालना चाहता है।