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बहुत बोलता हूँ मैं / महमूद दरवेश

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बहुत बोलता हूँ मैं
स्त्रियों और वृक्षों के बीच के सूक्ष्म भेदों के बारे में
धरती के सम्मोहन के बारे में
और ऐसे देश के बारे में
नहीं है जिसकी अपनी मोहर पासपोर्ट पर लगने को

पूछता हूँ : भद्र जनों और देवियों!
क्या यह सच है- जैसाकि आप कह रहे है-
कि यह धरती है सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए ?
यदि सचमुच ऐसा है
तो कहाँ है मेरा घर-
मेहरबानी कर मुझे मेरा ठिकाना तो बता दें आप !

सम्मेलन में शामिल सब लोग
अनवरत करतल-ध्वनि करते रहे अगले तीन मिनट तक-
आज़ादी और पहचान के बहुमूल्य तीन मिनट!

फिर सम्मेलन मुहर लगाता है लौट कर अपने घर जाने के हमारे अधिकार पर
जैसे चूजों और घोड़ों का अधिकार है
शिला से निर्मित स्वप्न में लौट जाने का।

मैं वहाँ उपस्थित सभी लोगों से मिलाते हुए हाथ
एक-एक करके
झुक कर सलाम करते हुए सबको-
फिर शुरु कर देता हूँ अपनी यात्रा
जहाँ देना है नया व्याख्यान
कि क्या होता है अंतर बरसात और मृग-मरीचिका के बीच
वहाँ भी पूछता हूं : भद्र जनों और देवियों!
क्या यह सच है- जैसा आप कह रहे हैं-
कि यह धरती है सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए ?

अनुवाद : यादवेन्द्र