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आस्था - 75 / हरबिन्दर सिंह गिल
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हाँ, मानव की
सहानुभूति तो थी
और आज भी है
जो झुलस गए थे
उस आग में
परत आस्था के अभाव में
सहानुभूति
मरने वालों की
गिनती तक ही
सीमित होकर
रह गई थी।
काश मानव
इसे दुर्घटना न मान
मानवता पर लगे
घावों के संदर्भ में
देखने की
करता कोशिश
माँ की मौत का
प्रश्न ही न उठता।
बच्चो! सच्चाई के गीत गाओ
और मनुष्य से कहो
कुछ कहने और कुछ करने की
नीति सिखाकर
मुझसे और झूठ मत बोलो।