भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस्था - 75 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 1 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाँ, मानव की
सहानुभूति तो थी
और आज भी है
जो झुलस गए थे
उस आग में
परत आस्था के अभाव में
सहानुभूति
मरने वालों की
गिनती तक ही
सीमित होकर
रह गई थी।

काश मानव
इसे दुर्घटना न मान
मानवता पर लगे
घावों के संदर्भ में
देखने की
करता कोशिश
माँ की मौत का
प्रश्न ही न उठता।

बच्चो! सच्चाई के गीत गाओ
और मनुष्य से कहो
कुछ कहने और कुछ करने की
नीति सिखाकर
मुझसे और झूठ मत बोलो।